फूलो के रंग उड़ गए, दरख़्त नमी को भूल गये....
हमी ने दिखाई जन्नत और वो हमी को भूल गए......
किस्सा कुछ दिन ब दिन हो चला है ऐसा.......
फलक की चाह करते रहे, जमीं को भूल गये.....
चर्चे बहुत सुने थे उसके, हुआ सामना एक दिन.....
उसकी दीवानगी में बेशक हर कमी को भूल गये......
बड़ी हैरतंगेज है ख़ुशी गुनाहगारों की फितरत.......
खुद के खौफ क आगे आदमी को भूल गये...........!!
हमी ने दिखाई जन्नत और वो हमी को भूल गए......
किस्सा कुछ दिन ब दिन हो चला है ऐसा.......
फलक की चाह करते रहे, जमीं को भूल गये.....
चर्चे बहुत सुने थे उसके, हुआ सामना एक दिन.....
उसकी दीवानगी में बेशक हर कमी को भूल गये......
बड़ी हैरतंगेज है ख़ुशी गुनाहगारों की फितरत.......
खुद के खौफ क आगे आदमी को भूल गये...........!!
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