कौन कहता है जिन्दगी से उन्स न रहा
कौन कहता है जमाने से प्यार न रहा
संगो खिस्त की दीवारों से निकलकर
कौन कहता है मेरा घर बार न रहा
एक बार मुडके देखने में क्या जाता है तेरा
जाते जाते भी हमको करार न रहा
अब शिकायतों का मौका बचा भी नही कोई
वो बैरी न रहा वो यार न रहा..............!!!!!!!
कौन कहता है जमाने से प्यार न रहा
संगो खिस्त की दीवारों से निकलकर
कौन कहता है मेरा घर बार न रहा
एक बार मुडके देखने में क्या जाता है तेरा
जाते जाते भी हमको करार न रहा
अब शिकायतों का मौका बचा भी नही कोई
वो बैरी न रहा वो यार न रहा..............!!!!!!!
No comments:
Post a Comment