सर्द फ़िज़ाएं हर शाम सहर अब
बर्फ हवा में जैसे घोलें.......
कभी कभी मिलती है फुर्सत
कुछ मैं बोलूं, कुछ तू बोले......
मन में टीस सी उठती है की
जुबाँ कहीं ये राज न खोले
न जाने कब जुल्फ के बादल
कचनारों के अंक में सोले
दिल कहता है मौका मिलते ही
मन के कलुष को प्रेम से धोले
बहुत देर हुई चर्चा करते
राख में दब गये जलते शोले.......!!
बर्फ हवा में जैसे घोलें.......
कभी कभी मिलती है फुर्सत
कुछ मैं बोलूं, कुछ तू बोले......
मन में टीस सी उठती है की
जुबाँ कहीं ये राज न खोले
न जाने कब जुल्फ के बादल
कचनारों के अंक में सोले
दिल कहता है मौका मिलते ही
मन के कलुष को प्रेम से धोले
बहुत देर हुई चर्चा करते
राख में दब गये जलते शोले.......!!