नदी हूँ जल से रीती हूँ...
मत पूछो क्यों जीती हूँ...
प्यास 'ख़ुशी' की जाग उठे तो
खुद के आंसू पीती हूँ....
सदियों की जो चाहत की तो
लम्हा बनकर बीती हूँ....
दिल पे ज़ख्म हजारों हैं,
जो रोज रोज मैंने सीती हूँ...
खेल तो लम्बा था न जाने
हारी हूँ या जीते हूँ...
किन उम्मीदों में न जाने
गलतफहमियों में जीती हूँ...!!
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