Wednesday 7 May 2014

अलफ़ाज़ अधबुने

जब किश्तों किश्तों में दिल के किस्से कुछ धुंधलाने लगते हैं...
तब सारी रात सदी सी लम्बी, और ख्वाब पुराने लगते हैं....
जब आँखें नम हों, आंसू मलहम हो, गम जख्म जलाने लगता है 
पीछे छूटा एक एक लम्हा, दिल बहलाने लगता है............
जब बातें नई पुरानी मिलकर पूरी दुनिया बन जाती है
दिन भर की रस्मो के बोझ तले जब शाम की छतरी तन जाती है..
तब रात के जानिब बढ़ते लम्हे, कोई बीमारी लगते हैं...
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं..  

सावन की कोई अलसाई सुबह जब बारिश की बूंदे लाती है..
मिट्टी की वो भीनी खुशबु, हर पल ताज़ा कर जाती है...
जब गली से बहते पानी के रेले सारा बचपन लगते हैं..
तब सारे जहां की शानो शौकत, धन दौलत बेमन लगते हैं
धूल की परतें सनी हुई जब आधी सी कहानी मिलती है 
या किसी पुरानी किताब तले जब लोगों की निगरानी मिलती है 
तब जीने के सब ढोंग किसी नाटक की बस हिस्सेदारी लगते हैं  
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं..

जब हरी भरी फ़िज़ा का रस्ता, पतझड़ के जंगल को जाता है..
सब कुछ होकर बेहतर भी मन अनायास बोझिल हो जाता है 
जब बेवजह की रस्में जी के जंजाल बढ़ाने लगती हैं
टूटे हुए विश्वास की किरचें, रह रहकर चिढ़ाने लगती हैं
जब दर्द का साया फैले इतना की आकाश बनाने लगता है 
छोटी छोटी चुभनों का खंजर, बस वफ़ा निभाने लगता है  
हयात आवारा लगती है, कायनात बेमानी होती है 
मेरी ही दुनिया है लेकिन, चाहे जिसकी मनमानी होती है 
तब सारे लोग 'ख़ुशी' के दुश्मन, बारी बारी लगते हैं....
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं  

जब चाँद के बिस्तर पे अंगड़ाई, सोने की तैयारी करती है
कोई तड़पती आह मगर, नींद की पहरेदारी करती है
जब ज़र्रा ज़र्रा तन्हाई, फ़क़त अफ़साना बनाने वाली हो
ज़िंदा रहने की सच्चाई, अरमान जलाने वाली हो....
तब मन के संशय झुठलाने के सब राज बेगाने लगते हैं
ख़ुशी महज एक परछाई, जहां सब लोग दीवाने लगते हैं..!!


जब जान से ज्यादा बढ़कर भी कोई ख्वाब हंसी बन जाता है....
मन और धड़कन के बीच अनकहा अलगाव गजब ठन जाता है
जब दिल की चाहत, हर हसरत, हर सांस पे भारी लगती हो
जब प्यार किसी के पास हो गिरवी, हयात उधारी लगती हो
तब चेहरे की हर परत, हर शिकन, कोई हार करारी लगते हैं
और भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने , बस एक जिम्मेदारी लगते हैं....!!