My Masterpiece -part 3
पुष्प, पवन, पावक, पंछी, पथ व पथिक से स्वछन्द सरल
बेल, बयार, विचार, बसंत, किस सम हो ऐसे तीव्र चपल
सब संसार से सारा हटकर,
सौ संकट के सम्मुख डटकर
थोड़ा थोड़ा सब में बँटकर भी,
पूरे स्वयं सदा हो जाते हो...!!
गुंचे चटकें कचनारों के, पर मुझको उस तरुवर से क्या,
मेरी तृप्ति कुछ प्रेम कणों में, मुझको किसी सरोवर से क्या,
तुम निराकार, मैं साकार छवि,
तुम निराधार, मैं आधार शिला,
तुम एक अदृश्य अहसास मेरा
जो आकर गुमहो जाते हो...!!
निशा चली, निशीथ चला, पर नयनो को नींद सुहाए नही,
हंसी ठिठोली, रूप, रंगोली, श्रृंगार, सहेली भाये नही,
बन बावरिया शिख से पग तक,
राह तकूँ मैं डग से जग तक,
पहुँच सकूँ मैं तुम तक तब तक,
विहान अगम्य हो जाते हो..........!!
पुष्प, पवन, पावक, पंछी, पथ व पथिक से स्वछन्द सरल
बेल, बयार, विचार, बसंत, किस सम हो ऐसे तीव्र चपल
सब संसार से सारा हटकर,
सौ संकट के सम्मुख डटकर
थोड़ा थोड़ा सब में बँटकर भी,
पूरे स्वयं सदा हो जाते हो...!!
गुंचे चटकें कचनारों के, पर मुझको उस तरुवर से क्या,
मेरी तृप्ति कुछ प्रेम कणों में, मुझको किसी सरोवर से क्या,
तुम निराकार, मैं साकार छवि,
तुम निराधार, मैं आधार शिला,
तुम एक अदृश्य अहसास मेरा
जो आकर गुमहो जाते हो...!!
निशा चली, निशीथ चला, पर नयनो को नींद सुहाए नही,
हंसी ठिठोली, रूप, रंगोली, श्रृंगार, सहेली भाये नही,
बन बावरिया शिख से पग तक,
राह तकूँ मैं डग से जग तक,
पहुँच सकूँ मैं तुम तक तब तक,
विहान अगम्य हो जाते हो..........!!
No comments:
Post a Comment