कैसी फितरत का है.
उफ़ तेरी आराइश-ऐ-महफ़िल, तेरा आब-ऐ-नजराना
तेरा ये लोगों को जतलाना कि तू उनको अफ़सुर्दा नहीं करता
मैं आकिल तो हूँ इतना कि, तुझे गद्दार कह सकूं
भरी महफ़िल में मगर दोस्तों को बेपर्दा नहीं करता...
मुझे एहतियाज नहीं जरा भी, कोई एहतियात बरतने की..
मैं अपने आप में जो हूँ..बड़ा ही बेमिसाल हूँ
मेरी शीशे सी साफ़ नियत में तू चेहरा देख ले अपना
खुद्दार हूँ कि अपने ऐब पर पर्दा नहीं करता
तू बे-नजीर है अपनी बज़्म में, लोगो से सुना मैंने
मेरे दानिश्ता तू नायाब है...तूने ही बताया था
तू नूर-ऐ-कचनार है पर कैसी फितरत का है..
तेरे आगोश में बसने वालों को भी तू ज़र्दा नहीं करता...
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