'ख़ुशी' जूनून है
डूबी हूँ मैं तेरे हर्फ़ हर्फ़ में इस कदर...
मेरे खुद के लफ्ज़ मेरी जुबां में ही गल जाते हैं..
किसी और के अलफ़ाज़ मुझमे उतरते ही नहीं फिर
वो मेरे बाहरी वज़ूद से ही फिसल जाते हैं....
लिखा था तुझे सफ़ा सफ़ा, अपने आईने में एक दिन
अब आइना देखती हूँ तो सारे लोग जल जाते हैं..
'ख़ुशी' जूनून है, 'ख़ुशी 'शौक है..'ख़ुशी' उफान जज़्बों का..
'ख़ुशी 'संजीदगी जिसकी देहलीज़ पर अक्स पिघल जाते हैं...
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