Sunday 6 April 2014

गहमागहमी

रूत बदली, रुतबा बदला तो लोग ये सारे बदल गये
कुछ नाजुक कलियाँ बनी संगदिल, कुछ पत्थर भी पिघल गये

वही मोड़ है, वही रास्ता, वही पुराने रहवर भी......
लेकिन सफरेवजह औ मायनेमंजिल बदल गये 

बहुत हुआ चर्चा ऐ मसला, लम्बी लम्बी बात चली 
खुशफहमी में बीता किस्सा, किश्तो में किस्से निकल गये

प्यार, मोहब्बत, फ़िक्रोजिकर के सारे आलम डूब गये, 
रंजोगम कि लौ में शायद सारे जज्बे उबल गये 

सारे ख्वाब थे बावस्ता बस एक समुन्दर ऐ मंजर से
कुछ फिसले, कुछ डूबे, लेकिन कुछ बेचारे सम्हाल गये

चहक चहक क्र मन क पंछी कर तो चुके हैं काफी ज़िद
थोडा दान पानी डाला तो खुदबखुद सब बहल गये

यु तो खुदगर्जी, खुद्दारी के बहुतोबहुत से दौर चले 
क्या कारण, क्या वजह बनी कि लोग ये सारे उछल गये

साड़ी ज़द्दोजहद में सबके हाथ बहुत कुछ आया तो
यु ही सारी गहमागहमी में 'ख़ुशी' के लम्हे फिसल गये......!!

  


No comments:

Post a Comment