Sunday 27 July 2014

My Masterpiece -part 3

पुष्प, पवन, पावक, पंछी, पथ व पथिक से स्वछन्द सरल
बेल, बयार, विचार, बसंत, किस सम हो ऐसे तीव्र चपल
सब संसार से सारा हटकर,
सौ संकट के सम्मुख डटकर
थोड़ा थोड़ा सब में बँटकर भी,
पूरे स्वयं सदा हो जाते हो...!!

गुंचे चटकें कचनारों के, पर मुझको उस तरुवर से क्या,
मेरी तृप्ति कुछ प्रेम कणों में, मुझको किसी सरोवर से क्या,
तुम निराकार, मैं साकार छवि,
तुम निराधार, मैं आधार शिला,
तुम एक अदृश्य अहसास मेरा
जो आकर गुमहो जाते हो...!!

निशा चली, निशीथ चला, पर नयनो को नींद सुहाए नही,
हंसी ठिठोली, रूप, रंगोली, श्रृंगार, सहेली भाये नही,
बन बावरिया शिख से पग तक,
राह तकूँ मैं डग से जग तक,
पहुँच सकूँ मैं तुम तक तब तक,
विहान अगम्य हो जाते हो..........!!

Wednesday 7 May 2014

अलफ़ाज़ अधबुने

जब किश्तों किश्तों में दिल के किस्से कुछ धुंधलाने लगते हैं...
तब सारी रात सदी सी लम्बी, और ख्वाब पुराने लगते हैं....
जब आँखें नम हों, आंसू मलहम हो, गम जख्म जलाने लगता है 
पीछे छूटा एक एक लम्हा, दिल बहलाने लगता है............
जब बातें नई पुरानी मिलकर पूरी दुनिया बन जाती है
दिन भर की रस्मो के बोझ तले जब शाम की छतरी तन जाती है..
तब रात के जानिब बढ़ते लम्हे, कोई बीमारी लगते हैं...
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं..  

सावन की कोई अलसाई सुबह जब बारिश की बूंदे लाती है..
मिट्टी की वो भीनी खुशबु, हर पल ताज़ा कर जाती है...
जब गली से बहते पानी के रेले सारा बचपन लगते हैं..
तब सारे जहां की शानो शौकत, धन दौलत बेमन लगते हैं
धूल की परतें सनी हुई जब आधी सी कहानी मिलती है 
या किसी पुरानी किताब तले जब लोगों की निगरानी मिलती है 
तब जीने के सब ढोंग किसी नाटक की बस हिस्सेदारी लगते हैं  
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं..

जब हरी भरी फ़िज़ा का रस्ता, पतझड़ के जंगल को जाता है..
सब कुछ होकर बेहतर भी मन अनायास बोझिल हो जाता है 
जब बेवजह की रस्में जी के जंजाल बढ़ाने लगती हैं
टूटे हुए विश्वास की किरचें, रह रहकर चिढ़ाने लगती हैं
जब दर्द का साया फैले इतना की आकाश बनाने लगता है 
छोटी छोटी चुभनों का खंजर, बस वफ़ा निभाने लगता है  
हयात आवारा लगती है, कायनात बेमानी होती है 
मेरी ही दुनिया है लेकिन, चाहे जिसकी मनमानी होती है 
तब सारे लोग 'ख़ुशी' के दुश्मन, बारी बारी लगते हैं....
और भींगे भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने बस जिम्मेदारी लगते हैं  

जब चाँद के बिस्तर पे अंगड़ाई, सोने की तैयारी करती है
कोई तड़पती आह मगर, नींद की पहरेदारी करती है
जब ज़र्रा ज़र्रा तन्हाई, फ़क़त अफ़साना बनाने वाली हो
ज़िंदा रहने की सच्चाई, अरमान जलाने वाली हो....
तब मन के संशय झुठलाने के सब राज बेगाने लगते हैं
ख़ुशी महज एक परछाई, जहां सब लोग दीवाने लगते हैं..!!


जब जान से ज्यादा बढ़कर भी कोई ख्वाब हंसी बन जाता है....
मन और धड़कन के बीच अनकहा अलगाव गजब ठन जाता है
जब दिल की चाहत, हर हसरत, हर सांस पे भारी लगती हो
जब प्यार किसी के पास हो गिरवी, हयात उधारी लगती हो
तब चेहरे की हर परत, हर शिकन, कोई हार करारी लगते हैं
और भींगे पन्नो पे अलफ़ाज़ अधबुने , बस एक जिम्मेदारी लगते हैं....!!




Sunday 6 April 2014

मिसालेदोस्ती

करता है तारीफ अब भी, जहां अपने साथ का

बरसो से है, बरसो रहेगा, गुणगान अपने साथ का

हम मिसालेदोस्ती की गिरफ्त में हैं आजतक 

लोग करते आज भी हैं, किस्सा बयान अपने साथ का

चर्चे बहुत से हुए हैं, दोस्ती के का जहां में पर

मकसद रहा है हाँ बहुत महान अपने साथ का

एक मैं और एक तुम हैं, जान अपने साथ की

'ख़ुशी' को भी हो रहा है, भान अपने साथ का.....!! 

इंसानियत

इंसानियत हर रोज ही यहाँ छली जाती है
ये दुनिया है कि दुनिया के हर कूचे से, 
रोज चाँद जज्बातो की बलि जाती है...........

वो बात अलग है, वो और लोग हैं...
जिनके घर तक एहतरामो की गली जाती है......!!

जुल्मोसितम और दर्द का निकाह है देखो
एहसानों की, तानों की हल्दी माली जाती है....!!

उसके पड़ोस में आजकल कोई जख्मी है शायद
हर रोज उस तरफ नमक की डली जाती है..........!!

कल कहीं किसी का जश्न था, जलसा था
आज उसके यारों की टोली, जली जाती है.....!!

खूबसूरत गुलाब है तो, बदसूरती क्या है
जान से तो खिलती हुई कली जाती है.....!!

सुना है ख़ुशी आई है फिर गलती से इस गली 
आँख खुलते ही मगर हर 'ख़ुशी' चली जाती है.......!! 

गहमागहमी

रूत बदली, रुतबा बदला तो लोग ये सारे बदल गये
कुछ नाजुक कलियाँ बनी संगदिल, कुछ पत्थर भी पिघल गये

वही मोड़ है, वही रास्ता, वही पुराने रहवर भी......
लेकिन सफरेवजह औ मायनेमंजिल बदल गये 

बहुत हुआ चर्चा ऐ मसला, लम्बी लम्बी बात चली 
खुशफहमी में बीता किस्सा, किश्तो में किस्से निकल गये

प्यार, मोहब्बत, फ़िक्रोजिकर के सारे आलम डूब गये, 
रंजोगम कि लौ में शायद सारे जज्बे उबल गये 

सारे ख्वाब थे बावस्ता बस एक समुन्दर ऐ मंजर से
कुछ फिसले, कुछ डूबे, लेकिन कुछ बेचारे सम्हाल गये

चहक चहक क्र मन क पंछी कर तो चुके हैं काफी ज़िद
थोडा दान पानी डाला तो खुदबखुद सब बहल गये

यु तो खुदगर्जी, खुद्दारी के बहुतोबहुत से दौर चले 
क्या कारण, क्या वजह बनी कि लोग ये सारे उछल गये

साड़ी ज़द्दोजहद में सबके हाथ बहुत कुछ आया तो
यु ही सारी गहमागहमी में 'ख़ुशी' के लम्हे फिसल गये......!!

  


Sunday 30 March 2014

जलते शोले

सर्द फ़िज़ाएं हर शाम सहर अब
बर्फ हवा में जैसे घोलें.......

कभी कभी मिलती है फुर्सत
कुछ मैं बोलूं, कुछ तू बोले......

मन में टीस सी उठती है की 
जुबाँ कहीं ये राज न खोले 

न जाने कब जुल्फ के बादल 
कचनारों के अंक में सोले

दिल कहता है मौका मिलते ही
मन के कलुष को प्रेम से धोले 

बहुत देर हुई चर्चा करते 
राख में दब गये जलते शोले.......!!

कायनात

लोग बदल जाते हैं, कायनात बदल जाती है....
वक़्त बदलता है तो हर बिसात बदल जाती है...

वक़्त पे साथ देने की जो बात करते हैं.....
वक़्त पड़ने पे उनकी हर बात बदल जाती है..

रंग चढ़ता है, उतरता है, नशा छाता है, खो जाता है...... 
होश आता है तो इंसान की हयात बदल जाती है......

घातों से, प्रतिघातों से, हालात के झंझावातों से.... 
खयालात बदल जाते हैं, वजहे हयात बदल जाती है...........!! 

Monday 24 March 2014

गलतफहमियां

नदी हूँ जल से रीती हूँ...
मत पूछो क्यों जीती हूँ...

प्यास 'ख़ुशी' की जाग उठे तो
खुद के आंसू पीती हूँ....

सदियों की जो चाहत की तो
लम्हा बनकर बीती हूँ....

दिल पे ज़ख्म हजारों हैं,
जो रोज रोज मैंने सीती हूँ...

खेल तो लम्बा था न जाने
हारी हूँ या जीते हूँ...

किन उम्मीदों में न जाने
गलतफहमियों में जीती हूँ...!!

जज्बात

अंजाम दो, आगाज दो, एक नया हमराज दो
दूर गर कोई जा रहा हो, तुम उसे आवाज दो.....

प्यार दो, तकरार दो जीत भी लो, दिल हार दो
गिर रहे को थाम लो और जीने के आसार दो....

मान दो, सम्मान दो, कुछ नए अरमान दो
ज़िंदगी से दूर जो हो तुम ही उसको जान दो

आस दो, उल्लास दो, उड़ने को आकाश दो
साथ अपने चलने का, अब मुझे विश्वास दो

बात दो, जज्बात दो, थोडा मेरा साथ दो...
हो अकेला इस जहां में कोई तो फिर हाथ दो.......!!

फलसफा

मुझे अपने अक्स कि कुछ सादगी दे दो....
मैंने हंसी दे दू तुम्हे तुम बेबसी दे दो...

कुछ बात तो जरुर उस शख्स में होगी...
खुद माहताब कहता है जिस से चांदनी दे दो

ऐसे भी लोग हैं जमाने में जिनका फलसफा ये है
जिसने जब जो माँगा उसे वही दे दो...

आखरी ख्वाहिश जैसे ही ये बात मान लो
'ख़ुशी' को कुछ लम्हे और ज़िंदगी दे दो.........!!



नसीब

हर बार नसीब मुझसे रूठ जाता है.......
सुख साथ चलता है दो घड़ी, मगर फिर छूट जाता है...... 

कितना मुश्किल है सम्हलना पूछे कोई हमसे......
न चाहते हुए भी रिश्ता कोई जब टूट जाता है........

कई दफा न उतारो यु खुद को शीशे में....
अक्स बिखर जाता है जब शीशा टूट जाता है....

अब मेरी नजदीकियों की उम्मीद न करना....
ज़रा सी दूरियों से ही ये दिल टूट जाता है.......!!

Friday 7 March 2014

महिला दिवस विशेष

है क्रोध हमारा ज्वाला तो प्यार हमारा मोती है
हर नारी अग्नि सी पावन, हर दीपक की ज्योति है
कुछ ख़ास है हम में ऐसा जो और कहीं ना हो सकता है
कुछ बात हमारी ऐसी है जो केवल हम में होती है...........!!

कुछ राज हमारी फितरत के, गर जान अगर ले ये दुनिया
हो जाये चमन हर उजड़ा वन, देखे फिर जन्नत क्या होती है
कुछ चाल हमारी ऐसी जो वक़्त बदल दे आज अभी
हर बार सृजन नव करती है जब,तो खुद को जैसे खोती है

कुछ गीत हमारे ऐसे जो...गान हुए, आजान हुए
कुछ आंसू की बूंदे ऐसी जो हर मन के कलुष को धोती है
कुछ शब्द हमारे ऐसे कि जिनके आशय अनसुलझे
कुछ कृत्य अनूठे जिनसे हम आगे, दुनिया पीछे होती है

कभी कभी खनखनाती हंसी, जो हर कलरव बन जाती है
वही जगाती नींद से उनको, जिनमे मानवता सोती है
कुछ हिस्सेदारी ही हमारी, क्यों सबका रुतबा बन जाती है
कुछ आँखों की भाषा ही अपनी, सारी मधुशाला होती है 

Monday 3 March 2014

आज फिर चले आओ...




उठ रही है सांस सांस, क्यों सुवास कोई मनचली
गुजरे पल, फिर गुजरे दिन, फिर मास काफी गुजर गये
हुआ नही आभास ये मुझको, अनायास तुम्हारी बन चली
मुझे सतत एहसास तुम्हारा, है नहीं विश्वास तुमको
मैंने दिल की हर परत से, बना लिया कुछ ख़ास तुमको
लग नहीं रहा कहीं पे, मन बेचारा बेमन है....
आज फिर चले आओ, प्रेम का निवेदन है............!!

तुम अगर सागर विशाल, मैं नदी बनूँ, निर्झरा बनूँ
तुम अगर आकाश विस्तृत, सब सहूँ और धरा बनूँ
मैं मृदा जो बस तुम्हारे प्रेम रस में भींगी हुई
उत्सुक बहुत तुम जो कहो पूरा नहीं तो ज़रा बनूँ
मैं तुम्हारी चेतना, फिर भाव क्यों अचेतन है.....
आज फिर चले आओ, प्रेम का निवेदन है.......!!

तुम वही चट्टान हिम की, मैं जलती ज्वाला आज फिर
दे दिया हर अन्धकार को उजाला आज फिर
हर रास्ते के दो तरफ, सजाये हैं दीपक आस के
कोई दिल का बहुत प्रिय, ज्यों आने वाला आज फिर
तन तो पहले भी यही था, प्राण से अब सम्मेलन है...
आज फिर चले आओ...प्रेम का निवेदन है...........!!


भूल बैठे हो डगर कह, किसी बहाने आ जाओ
मैं निभाऊं हर कसम, तुम आजमाने आ जाओ
मैंने सारे किये जतन उस चित्रकारी को भरने के
बना दिए निर्जीव पात्र, तुम प्राण जगाने आ जाओ
लोग अब कहने लगे हैं, मुझमे तुझमे अनबन है....
आज फिर चले आओ...प्रेम का निवेदन है..........!!
 

Saturday 15 February 2014

ऐहसान

बना दिया खुदा ने तुम्हे किसी दिन
इस जहान की खातिर...
इंसानियत है लाजिमी इंसान की खातिर...
मत ज़र्रा ज़र्रा जला ये नक्से नजाकत है
दिल मिलता है की जी सकें जिस्मोजान की खातिर....
हमने तब भी कहा था, हम आज भी कहते हैं
सबसे हंसके न मिला करो हिफाजते ईमान की खातिर...
तुम्हारी दोस्ती के बावस्ता ख़ुशी है 'ख़ुशी' को
गुमान होता है हरसूँ तुम्हारे ऐहसान की खातिर....!!!

Friday 7 February 2014

My MasterPiece- 2 continued after शीतल शरद समीर

ग्रीष्मकाल की रजनी कंहू या शशिर ऋतू का वासर तुमको
श्वास कंहू, विश्वास कंहू, दिवा कंहू या दिवाकर तुमको 
तन में, मन में और जन जन में 
बंजर भूमि में, उपवन में
बियावान वन में, जीवन में
क्यों स्वप्न नवल बो जाते हो?

आचार, विचार मंडित छवि पर, कुछ सदाचार के रत्न जटित
आकार विकार हीन वसुधा की निराकार शोभा वर्णित
गीतों की सरगम में हरदम
वर्षा की रिम झिम में छम छम
दीपक की टिम टिम में भी कैसे
नग सम हिम बन जाते हो?

कभी चन्द्र सा, कभी चन्दन सा, कभी चंद्रभान सा प्रकाश गिरा
बन सावन क्षण क्षण में कैसे कर जाते हो धरा को हरा भरा
अम्बु से, अवनि से, अम्बर से
सर, सागर से या सरोवर से
घन से, घटा से या निर्झर से
भर सुधा घट कहाँ से लाते हो?

सुमन सामान पुलकित मुख पर, जाने अनजाने रहस्य रमा
वाणी की शुचिता भी ऐसी, ज्यों जिव्हा पर हो मधु जमा
नभचर भांति वन विचरण में
निशिचर भांति जागरण में
देव, मनुज, गन्धर्व, निशाचर का
मधुर मिलन बन जाते हो |

हरित पर्ण के धानी वर्ण में, प्रकृति का जो लावण्य निहित
ऋतू, ऋचा, रिद्धिमा पूजक सम, प्रसून, प्रसाद और प्राञ्जल्य सहित
बाग़ हुए, बागान हुए
बन गुंजन गुंजायमान हुए
कर्ण प्रिय सा गान हुए तुम
हर कलरव में बस जाते हो ||

फितरत

फूलो के रंग उड़ गए, दरख़्त नमी को भूल गये....

हमी ने दिखाई जन्नत और वो हमी को भूल गए......


किस्सा कुछ दिन ब दिन हो चला है ऐसा.......


फलक की चाह करते रहे, जमीं को भूल गये.....


चर्चे बहुत सुने थे उसके, हुआ सामना एक दिन.....


उसकी दीवानगी में बेशक हर कमी को भूल गये......


बड़ी हैरतंगेज है ख़ुशी गुनाहगारों की फितरत.......

 
खुद के खौफ क आगे आदमी को भूल गये...........!!

उन्स

कौन कहता है जिन्दगी से उन्स न रहा 

कौन कहता है जमाने से प्यार न रहा


संगो खिस्त की दीवारों से निकलकर 


कौन कहता है मेरा घर बार न रहा 


एक बार मुडके देखने में क्या जाता है तेरा


जाते जाते भी हमको करार न रहा


अब शिकायतों का मौका बचा भी नही कोई


वो बैरी न रहा वो यार न रहा..............!!!!!!!

ख़ुशी

मुझको अपने अक्स की कुछ रौशनी दे दो

मेरी सारी जिन्दगी के बदले तुम्हारी सादगी दे दो


कुछ बात तो जरूर उस शख्स में होगी 


खुद चाँद जिस से कहता हैं चांदनी दे दो


कुछ दीवाने अपने ही ख्वाबो के ऐसे भी होते हैं 


जो कहते हैं वीरानियों से कि दीवानगी दे दो


सांझ होते ही पंछी सभी लौट आये ठिकानो पे अपने


लगे सोचने कोई दो पल कि ही सही मगर 'ख़ुशी' दे दो

प्यार

प्यार अगर न होता जग में
सारा जग बंजारा होता.......... 


ईश्वर तक अपराधी होता 
सारा खेल दुबारा होता.......... 


कायनात ये सारी, लोग सभी 
एक दूजे से बेगाने होते.........


जग सारा स्वार्थ में जीता मरता 
हर कोई मन से हारा होता...........

 
श्रृष्टि सारी रीती होती 
रात कभी न दुल्हन बनती........


मैं भी शायद सुन न पाती 
लाख किसी ने पुकारा होता.........

पलाश

है पलाश की महिमा अदभुत, निश्छल रूप अति स्वच्छंद..........!! 

कोई अवधूत सा बैठा एकांत में, नितांत समय का जो पाबन्द.........!!
जब पतझड़ आये, सब झड़ जाए, बंजर वन में जा पहुंचा 
दूर दूर तक हरीतिमा न पर वो कानन में जा पहुंचा 
उसके तेज का प्रताप प्रमाणित, धधक रहे अंगारक पुष्प 
इधर उधर पर बिखर बिखर सौभाग्य शिखर पर जा पहुंचा 

एक दिन जैसे सृष्टि रचेता ने खेल नया कोई खेला हो
लोग कहें दावानल सा उसको या अग्नि कणो का रेला हो
मुट्ठी में भर फेंक दिए हों ज्यो कोटि केसरिया मोती
प्रत्येक मोती में हुई उत्पन्न हो जैसे सौ सौ दीपक की ज्योति
वो तो पृथ्वी का प्रिय पुत्र पर उसका यश अम्बर पर जा पहुंचा....!!

फिर किसी कला के प्रेमी ने सारे ज्योति पुष्पो को उठाया हो
बड़े प्रेम से संजो संजो कर डाल डाल पे जमाया हो
उसके विशाल ह्रदय पर आश्रित, तरह तरह के सुन्दर नभचर
फिर भी उफ़ न करता संतोषी, प्रेम प्रतीक सा दृष्टिगोचर
उसके मोहपाश में बंधकर, बसंत भी दर पर जा पहुंचा

कोई प्रेमी अपनी रसिका को चाहे उसके पुष्पो से मनाये नहीं
उसके पुष्पो कि वेणी बनाकर कोई रूपसी केश सजाये नही
फिर भी उसके खिले जो गुंचे, कोई प्रेम कली जाती है चटक
हुआ आगमन बसंत ऋतू का, कहती सुंदरियां केश झटक
कभी कभी गुलदस्ता बनकर किसी के घर पर जा पहुंचा

है बिखरा देता जगह जगह पर, अपने रूप रंग का चमत्कार
उसका केसरिया वस्त्रो से, अलंकरणों से, खुद बसंतराज करता श्रृंगार
और किसी अतिथि सा आकर, दो तीन मास पृथ्वी पे बिताकर
रंगो का उत्सव सा मनाकर, प्रेम निमंत्रण पत्र थमाकर
फिर आने का कहकर सबके, ह्रदय के अंदर जा पहुंचा........!!



कशमकश

कशमकश 

धूल कि परतें जमीं है जिसमे वो अफसाना किसका है.......दिल की दुनिया में टूटा घर, शहर पुराना किसका है.................!!



उसको तो मिली विरासत में थी अपना बनाने कि तरकीब.......
सारे लोग जो अपने उसके तो वो आज बेगाना किसका है............!!



शरमा गयी क्यों उसकी शराफत, उस से जब ये पूछा तो..........मयखानों कि गली में आजकल ठौर ठिकाना किसका है............!!



आते जाते लोग ये सोचें उसकी नजरें देखें तो...........उन झील सी गहरी आखों में वो राज पुराना किसका है............!! 



एक तरफ कायनात ये सारी, एक तरफ बस धवल चांदनी..........चाँद बेचारा बैठा सोचे साथ निभाना किसका है...............!!



आज निगाहें उसकी जैसे पूछ रही थी सब से ये...........बहुत दीवाने प्यार में लेकिन प्यार दीवाना किसका है.........!!